Friday 22 May 2015

दादी “माँ”



वो थपकियाँ
वो लोरियाँ
वो परियों की कहानियाँ
वो झुर्रियों वाले हाथों से,
गालों को सहलाती उँगलियाँ
वो मर्म स्पर्श
वो नर्म डांट
वो आँखों का नम होना
मेरी हर आह पे
मेरे संग रोना
याद आता है मुझे
वो गोद में सिर रख,
घंटों बतियाना
रोज़ के नए किस्से कहानियाँ सुनाना
याद आता है मुझे
सिर्फ आँखों से डाँटना
और फिर बाहों में ले मनाना
खाना ना खाने पर,
अपने हाथों से खिलाना
याद आता है मुझे
दूर जो चले गए आप
आपको ना छू पाना
एक बार फिर,
गले से कस्स के लग जाना
पुरानी यादोँ को.
वो बचपन को,
फिर से जी जाना
सताता है मुझे
बीता हुआ हर वो पल
याद आता है मुझे………

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